आओ ज़रा बात करो
क्या हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के गुलाम बन चुके हैं ? जब बात विज्ञान और प्रौद्योगिकी का हो तो सबसे पहले विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बात करना बेहद जरूरी है क्योंकि पहले यह जानना जरूरी है कि यह दोनों एक ही हैं या अलग अलग हैं। जब हम विज्ञान की बात करते हैं तो विज्ञान किसी भी विषय का क्रम बद्ध और सुव्यवस्थित ज्ञान को कहने के लिए, जब बातों की तकनीक बनती है तो हमारा तात्पारी उत्पादन की विधियों से होता है, जिससे वस्तुओं का निर्माण होता है।
यदि हम अपने चारों ओर देखें तो हमें विज्ञान ही विज्ञान चारों तरफ दिखता है। यह सचमुच अच्छा है लेकिन यहां तक कि एक सवाल भी पैदा होता है कि आधुनिक मनुष्य का इस प्रकार केवल और केवल विज्ञान की तकनीक का दम पर अपनी सुबह और अपनी शाम को समर्पित करना मानव हित में उचित है?
इस सवाल का आशय यह है कि हम सुबह से शाम तक जिस तरह दैनिक जीवन के बेहद साधारण कार्य से लेकर प्रोफेशनल कामों तक जिस तरह तकनीक के आदी हो चले हैं क्या यह उचित है? क्या हम एक ऐसे घर की कल्पना कर सकते हैं जिस घर में पंखा कूलर टीवी एसी गीजर लैपटॉप माइक्रोवेव जैसी साधारण चीजें न हों ।
ईमानदारी से जवाब दें तो शायद इसका जवाब होगा बिल्कुल नहीं क्यों कि यह सत्य किसी से छिपा नही रह गया है कि हम प्रकृति प्रदत्त जीवन निरंतर भूलते जा रहे कमाल की बात यह है कि हम फिर भी बेखौफ अपनी मस्त चाल में मदमस्त हैं ।
हम और हमारा दैनिक जीवन
हम देख सकते हैं कि हमारे चारों तरफ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का ही बोलबाला है चाहे वह सुरक्षा व्यवस्था मे प्रयुक्त प्रौद्योगिकी हो या फिर स्वास्थ्य सेवाओं में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी हो या फिर शिक्षा में शामिल प्रौद्योगिकी हो या फिर आर्थिक उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली प्रौद्योगिकी हो या फिर परिवहन के क्षेत्र की प्रयुक्त प्रौद्योगिकी हो या फिर राजनैतिक क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली प्रौद्योगिकी ही क्यों न हो ।
ध्यान देने की बात यह है कि मेरा तात्पर्य यह नही है कि हमें इन आधुनिक सुविधाओं का फायदा नहीं उठाना चाहिए बल्कि मेरा तात्पर्य यहां केवल यह है कि हमें कबीर दास जी के इस दोहे का स्मरण करना चाहिए
अति का भला न बरसना! अति की भली न धूप!!
आओ बात करें कबीर की सीख की
यहां पर हमारा विवाद का आशय है कि जब से हम खुद को विकसित किया गया है, तब से प्रौद्योगिकी का हवाला दिया, तब से हमारी अपनी शारीरिक विकास प्रभावित है अगर एक तरफ चिकित्सा विज्ञान का फायदा हुआ तो चिकित्सा विज्ञान की ज़रूरत की अनावश्यक दबाव भी मैं झेल रहे हैं
जो जीने की शैली के लिए सच में ज़रूरत है शायद उसे हम या तो छोड़ चुके हैं या छोड़ने वाले हैं। शुक्र से शाम तक केवल तकनीक का बल पर अपना समय गुज़राना वाला शायद भूल गया है विज्ञान और प्रौद्योगिकी
Ekdam sahi hai
Nice information