पकौड़ा शास्त्र की सच्चाई
दोस्तों नमस्कार
यद्यपि मुझे पकौड़ा शास्त्र की शुरूआत में ज्ञान नहीं था इसलिए मैं इस विधा पर कुछ बोलने से घबराता था लेकिन कुछ महान लोगों की कृपा से अब मुझे काफी जानकारी हो गई है जैसे अब मुझे इस बात की भली-भांति ज्ञान हो गई है कि आजकल जितने भी तथाकथित वीर सपूत में इस देश में बड़ौदा बनाने के लिए उत्सुक हैं लगभग सभी उच्च कोटि के नाक प्रतिनिधि हैं।
यानी जो काफी दिनों से इस फ़िरक में बैठे थे कि कुतुर्क का कोई मौका हाथ लग रहा है और हम हमेशा की तरह अपने हवाई फायरिंग शुरू करते हैं तो उनकी यह शानदार उपलब्धि है कि वे अपनी कुतुर्क के झोंके के मार्ग में न केवल ढूंढ ली हैं बल्कि वह अपनी मकसद की मुहेन में झंडा फहरा रहे हैं। ईश्वर की कृपा से आजकल यह बहस काफी गति से गतिशील है
पकौड़ा शास्त्र की विशेषता
सबसे बड़ी विशेषता तो यही है कि यहां पर सभी लोग इस तरह के कथित बहादुर पढ़े गए लोग हैं जो भत्ता की भाषा को समझते हैं परन्तु उद्यमी के कोहरा न तो जानते हैं, न जानना चाहते हैं। परम प्रतापी यह फेसबुक
भक्त जन नौकरी की माला जपते जपटे यह भूल गए कि भत्ता के बरसास काफी पहले खत्म हो गया है।
इस परम आनंद दायक में बहस में पकौड़ा शास्त्र की अगली विशेषता यह है कि यहां वही भटकती आत्मा के इष्ट जन घूम घूमते हुए पिकाड़ा की धूम मचाने की फ़राक में हैं जो पहले तो माँ बाप की कमाई में महज डिग्री कमाया है और आज अपनी डिग्री को देख रहा है देखकर खुश होने की प्रगतिशील चिंता में चिंतित हैं
यह वही कारीगर प्रकार के लोग हैं जो ज़िन्दगी के लिए नौकरी तलाशने के लिए शपथ पत्र के साथ आप सभी को लगभग सभी घूमती गली में इतिहास रचते हुए पाए जाते हैं।
पकौड़ा शास्त्र की नीयत
आने वाले समय में यह पक्वाड़ा विक्रेता कितने और किस प्रकार के पकौड़े बनाकर अपनी डिग्री का सामुदायोग करे तो यह पता नहीं है लेकिन यह इस बात को निश्चित रूप से पता है कि पकौड़ा शास्त्र इन्हें शायद ही कभी दो जून की रोटी कमाई योग्य बनती है पाएगा
दोस्तों पकौड़ा शास्त्र मे कुछ लोग पीएचडी डिग्री होल्डर हैं जिन्होने अपनी जिंदगी में पकौड़ा के अलावा कुछ न तो सोचा है और न ही सोचने का भयंकर इरादा विज्ञापन सक्रिय नहीं है ते हैं।
विडंबना और पक्ड़ा
दोस्तों असली दुर्भाग्य इस देश में काम का संकट नहीं है। बल्कि असली संकट यह देश की बुद्धि है, जिस पर यह डौलती मंडली कुंडली मार कर इस तरह की बात है कि जब मौका मिले और वह रोजगार नहीं है, तो यह सब गलत तर्कों से समाज के समक्ष गीत संगीत के साथ प्रस्तुत कर के कहीं का इट कुछ तो रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा
को बकाइदा साबित किया
पकौड़ा निष्कर्ष
निश्चय यह है कि यह सब लोग जो बक्कोड़ा आंदोलन के हमराही हैं,
रोजगार नहीं हैं लेकिन केवल माला जपाना को जानते हैं। आगे बढ़ने के लिए रोजगार की खोज
या फिर खुद को रोजगार पैदा करना
सोचना तक नही चाहते।
धन्यवाद
लेखक: के पी सिंह
केपीएसिंगह 9775@gmail.com
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Good thinking Sir.
Very nice thought